भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोचा था सोचों को हम लें सींच बहस में / विनय कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोचा था सोचों को हम लें सींच बहस में।
लेकिन पानी कम था ज़्यादा कीच बहस में।

जाने क्यों बातें पत्थर होती जाती हैं
एक अदद दर्पण था टूटा बीच बहस में।

कब मुद्दा संसद से भागा देख न पाए
सबके सब बैठे थे आखे मीच बहस में।

मिन्दर, मिस्ज़द, गिरजे, गुरूद्वारे सब बौने
सबकी ऊँचाई शामिल है नीच बहस में।

दम घुटता है यार तकल्लुफ़ के पर्दे में
प्यार अगर है मुझसे, मुझको खींच बहस में।

जिसमें टकसालों के क़चरे फेंके जाते
उस दरिया का पानी नहीं उलीच बहस में।

इसी इलाके़ में रहती है जीभ नरम सी
बार-बार मत दाँतों को यूँ भींच बहस में।

राम और सीता पर बहसें छिड़ी हुई हैं
आ जाता है बार-बार मारीच बहस में।