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सोचिये ज़रा/ सजीव सारथी

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चारों दिशाएँ मिल जाए तो भी,
दुनिया एक हो जाए तो भी,
ताकत ही राज़ करेगा फिर भी,
कमजोर दबाए जायेगें यूँ हीं,
शासन यही रहेगा फिर भी

युद्ध तो चलता ही रहता है,
भीतर भी और बाहर भी,
जंग हर बशर की जारी है,
दर्द और हालतों से,
भूख से या बीमारी से,
संघर्ष तो मूल मन्त्र है,
जीवन का मानव के,
फिर हो बात हक की,
या सुरक्षा की,
या अपना अस्तित्व,
अपनी अस्मत बचाने की,
लड़ना ही पड़ता है सबके लिए,
क्यों हा-हाकार मचाते हो,
जब दो दल झगड़ते हैं,
जब दो धर्म उलझते हैं,
जब दो वतन सुलगते हैं,

शांति तो एक सपना है,
इसे आँखों में ही सोने दो...