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सोची नि कभी / महेंद्र सिंह राणा आज़ाद

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सोची नि कभी कुछ इनि ह्वै जालु
आँख्यू मा आँसू नि तब भी रुवै जालु।

इक पंछी आली रैबार माँ कु ल्यै के
समूण सिराणा धौरी वु चली जालु।

जुगराज रै ए पंछी धन तेरो घरबार
घ्वोल छोड़ी कै ए पंछी प्वोथिल उड़ी री जालु।

खूब रै होलु दुख तेरा गात भी
पंख ल्गै उड़्ग्या ह्वाला जब तेरा मयालु।

दुख अपणु छोड़ी, दर्द मेरी माँ कु
इन बिँगाई ए पंछी अब समोदर बौगी जालु।

बिँग्लु क्वै क्या तेरा मन की बात
अपणी खैरी बिपदा मा सब उड़ी जालु।