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सोचै छै बुधना माय / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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की कहिये हो, केकरा वोट दियै
सोचै छै बुधना माय।
पैंसठ-साठ बरस बितलै
सबके सब लूटै में रहलै,
बात विकास के झूठे पिहानी
युग छाती पर धरलोॅ राजा-रानी,
मारै छै सांग धसाय
कानी-कानी सोचै छै बुधना माय।

झग्गड़ नांकी नै सुलझै वाला ई बात,
छुछ्छे भाशण सुनी-सुनी काटै छी दिन-रात।
मिंया-मोमिन, पंडित-मुल्ला सब ठो ओकरे राजी,
गेलोॅ छै ओकरे पीछू डलिया भर माला साजी।
माघोॅ के पाला गेलोॅ छै, हमरोॅ अंग समाय
कानी-कानी माथोॅ धुनै छै बुधना माय।

वोटोॅ नै देलियै तहियोॅ, धोछा जीती आवै छै
करम साँढ़ ई नागे जैसनों, आगू में फुफआवै छै।
कल चुनाव छै पैसा लैकेॅ ऊ घुरै छै आय,
छौड़ा सबकेॅ की होलोॅ छै ? गेलोॅ छै उधियाय
आगू नाथ नै, पीछू पगहा, टेवी मारौं छड़ी रिंगाय
महंगाई के मारोॅ सें, हँफसै छै बुधना माय ।

भाशण पर टिकलोॅ ई देश गजब छै,
पैसा पर बिकलोॅ देशोॅ के लोग अजब छै।
गैया भुखोॅ सें डिकरै, नै छै दाना पानी,
गली-गली छौड़ा घुमै, झूठेॅ के बबुआनी।
लागै नै छै ओकरा हमरी, गैया केरोॅ हाय
बुक्का फाड़ी, छाती पीटी, कानै बुधना माय।

बरस पाँच सरकार बनै छै
रोजे-रोज चुनाव,
राज-काज जनहित की करतै
खाली खेलै दाव।
लहुवोॅ सें लिखी ताकै छै, हम्में रोज सरंग
हाय शहीद के सपना टूटलै, रहलै कहाँ उमंग।
सब गुड़ गोबर, नै छै कोनोॅ उपाय
विवश बेचारी चौखट लागी, सोचै बुधना माय।