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सोचै छै बुधना / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
आरी पे बैठी के सोचै छै बुधना
अबकी आबे की होतै हो राम।
अखार बीतै छै मेघ नै दीखै छै
होर फार होलै नै बिचड़ो जुतै छै
बीहन परैतै नै रोपो की होतै
घरोॅ में सभैं की खैते हो राम।
खुरपी टनाटन करी के उछलै
दुबड़ी सभे टा जरी के मरलै,
गाभिन गैया दुआरी पे डिकरै
माली के जान लगै जैते हो राम।
धरती के ठोरोॅ पर पपरी फटै छै
पानी चुँहाड़ी पताले सटै छै,
कर्जा महाजन रो सूद जाय पीने
मोट मोट होलो मोटैते हो राम।
हाय रे विधाता नै कैन्हेॅ बुझाय छोॅ
धरती के हालत नै कैन्हें सुझाय छोॅ,
राम राम करी करी दिन रात कटै छै
जिनगी पसीना चुऐत्ते हो राम।