भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोचो ऐसा हुआ तो क्या होगा / विवेक बिजनौरी
Kavita Kosh से
सोचो ऐसा हुआ तो क्या होगा,
मैं ही तन्हा हुआ तो क्या होगा
प्यार कर लूँ मगर मुझे डर है,
फिर से धोखा हुआ तो क्या होगा
ये मरज़ लाइलाज लगता है,
मैं न अच्छा हुआ तो क्या होगा
लोग करते हैं प्यार जिस्मों से,
तू भी उन सा हुआ तो क्या होगा
टूटकर जो बिख़र गया सोचो,
ग़र वो शीशा हुआ तो क्या होगा
तुम मुझे फिर मना तो लोगे पर,
मैं न मुझ सा हुआ तो क्या होगा
सोचता हूँ मैं छोड़ दूँ दुनिया,
पर न उसका हुआ तो क्या होगा