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सोचो कैसे / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
कैसे पता चलता है
टिडिड्यों को
अब की बार हरा-भरा है रेगिस्तान
बारिश बरसेगी और
धूसर से हरा होगा रेगिस्तान
तो टिडिड्यां भी आयेंगी ही
सुदूर अफगानिस्तान से
आती है शायद
कहीं से भी आती हो
लेकिन
हर दिन चाट जाती है
एक गांव की हरियाली
हरियाली ही नहीं
खुशहाली तथा
कितने ही हसीन सपने
चाट जाती है
मां-बाप की दवाई
बनिये का उधार
बच्चों की फीस
बीवी की दवाई
ये अजनबी आफत
जब आती है
तो रोके नहीं रूकती
रोज बढ़ती जाती है
दस साल में एक बार होने वाली
इस सपनों की फसल
पर तुषारापात करने
आ ही जाती हैं ये
अवांछित मेहमान
इस धरती को चाटने
इस धरती पर
पैदा होने और मरने
या तो अकाल
या फिर टिडिड्यां
फिर भी बचा रहता है आदमी
सोचो कैसे ?