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सोचो तो / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
इस खेत खड़े
प्यासे का
इतने जल से
क्या होगा,
अम्बर तुम सोचो तो
बिना तृषा के
स्वागत,
मेघों का भी
क्या होगा,
मौसम तुम सोचो तो
और सावन में
सावन,
डूबा न तो
क्या होगा,
तृष्णा तुम सोचो तो
इतने बाद
सफर के,
मिली छाँव न
क्या होगा,
सड़क ज़रा सोचो तो