सोचो सोचो सोचो सोचो / बोधिसत्व
यदि तुम पेड़ की तरह चुप रहोगे
वे तुम्हें अपनी कुर्सी अपना तखत बना लेंगे
यदि तुम पशुओं की तरह निहत्थे रहोगे
वे तुम्हारी खाल उतार कर तुम्हें बुहारते रहेंगे इस जंगल से उस जंगल तक
यदि तुम पंछियों की तरह केवल उड़ना और चुगना जानोगे
वे तुम्हें लोहे और सोने के पिंजरे में सुलाएँगे
यदि तुम पृथ्वी की तरह बिछे रहोगे
वे निर्दय तुम्हें जोतते-तोड़ते रहेंगे
यदि तुम पहाड़ों की तरह खड़े रहोगे मौन
वे तुम्हें टुकड़े-टुकड़े करके बना लेंगे अपनी सड़क
यदि तुम रुई की तरह रहोगे मूक
तो वे करते रहेंगे तुम्हें टूक-टूक
यदि तुम बिना दरवाज़े वाले घर की तरह रहोगे
वे तुम्हें अपना आँगन बना लेंगे
यदि तुम रहोगे बिना कारतूस की पिस्तौल ख़ाली
तो सहोगे अपमान और ग़ाली
अब तुम्हें ही तय करना है
कि क्या हो तुम्हारा
कोई और नहीं हो सकता विधाता तुम्हारा
कुर्सी बननी है या बुहारा जाना है
पिंजड़े में रहना है या जोते जाना है
सड़क बनना है या होना है टूक-टूक
बनना है आँगन या सुनना है गाली
सोचो सोचो सोचो सोचो
न हंँसो न रोओ न गाओ न बजाओ ताली
अब यह दुनिया बिना तुम्हारे कुछ किए तो
अणु भर भी नहीं बदलने वाली।