सोच की भट्टी में सौ -सौ बार दहता है
तब कहीं जाकर कोई इक शेर कहता है
हर किसी में होता है नफरत का पागलपन
कौन है जो इस बला से दूर रहता है
बात का तेरी करे विश्वास क्यों कोई
तू कभी कुछ और कभी कुछ और कहता है
टूट जाता है किसी बच्चे का दिल अक्सर
ताश के पत्तों का घर जिस पाल भी ढहता है
दुनिया में रहना है तो मिल -जुल के सब से रह
क्यों भला हर एक से तू दूर रहता है
क्या सहेगा पत्थरों की चोट कोई गुल
पत्रों की चोट तो पत्थर ही सहता है
धूप से तपते हुए ऐ " प्राण" मौसम में
सूख जाता है समंदर कौन कहता है.