कई चीजे ढूंढते नहीं मिलतीं
वे अपने आप मिल जाती हैं मिलती रहती हैं
वह भी आज अपने आप ही मिल गई
उसने मिल कर
न कोई संकोच किया न शरमाई बस मुझे ही देखती रही
जैसे सुबह की शाम की कल की
मुझे ही उडीकती रही हो सोचती रही हो
तुम मुझे कब की सोच रही हो...?
जब मैंने अपने आपको सोच लिया
तुझे भी सोच लिया
जितनी देर तुम नहीं मिले मैं सोचती रही
मैंने जहां भी लिखा जा सकता था
तेरी गैर हाजिरी लिखती आ रही हूँ
आज कल दफ्तर जाते भी और आते भी
तेरे स्कूटर के पीछे बैठ कर भी
तेरी पीठ पर तेरी गैर हाजिरी लिखती जा रही हूँ
अभी-अभी मुझे होश आई है
कि यह मैं क्या कर रही हूँ
हाजिर की पीठ पर ही गैर हाजिर लिखती आ रही हूँ
अब पहले मुझे तेरी पीठ चूम-चूम कर
सब लिखा अनलिखा कर लेने दे
देख मेरे जैसे गैर हाजिर कोई नहीं
और तेरे जैसी सोच जैसा हाजिर भी
कोई नहीं होगा