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सोच लेना, तुम्हें मैं हूँ याद आ गया / अमरेन्द्र

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सोच लेना, तुम्हें मैं हूँ याद आ गया।

याद आने लगे तुमको, दिन गीत के
छन्द फूटे अधर पर अगर प्रीत के
और अनचोके मन पर उदासी घिरे
कोई छाया-सी आँखों में रह-रह फिरे
सोच लेना, तुम्हें मैं हूँ याद आ गया।

आँखें तस्वीर-सी जब टँगी ही रहे
कोई पूछे जो कुछ, ये अधर कुछ कहे
मन तड़पने लगे बिजलियों की तरह
साँसें बन कर उठी आँधियों की तरह
सोच लेना, तुम्हें मैं हूँ याद आ गया।

करवटों में गुजर जाए रातें सभी
और ऐसा लगे, शूल गड़ते तभी
अपनी बाहों में खुद कसमसाने लगो
खुद को एकदम अकेली-सी पाने लगो
सोच लेना, तुम्हें मैं हूँ याद आ गया।