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सोच सुखी मेरी छाती है- / हरिवंशराय बच्चन
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सोच सुखी मेरी छाती है—
दूर कहाँ मुझसे जाएगी,
कैसे मुझको बिसराएगी?
मेरे ही उर की मदिरा से तो, प्रेयसि, तू मदमाती है!
सोच सुखी मेरी छाती है—
मैंने कैसे तुझे गँवाया,
जब तुझको अपने में पाया?
पास रहे तू कहीं किसी के, सुरक्षित मेरी थाती है!
सोच सुखी मेरी छाती है—
तू जिसको कर प्यार, वही मैं!
अपनेमें ही आज नहीं मैं!
किसी मूर्ति पर पुष्प चढ़ा तू पूजा मेरी हो जाती है!
सोच सुखी मेरी छाती है—