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सोज़ साहेब से है अब इरशाद कुछ फ़रमाइए / कांतिमोहन 'सोज़'
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सोज़ साहेब से है अब इरशाद कुछ फ़रमाइए ।
यां तो सारे यार ही बैठे हैं क्यूँ शरमाइए ।।
ख़ुद से कहते हैं कि अब खोलो भी अपनी डायरी
नाचने उतरे तो घूँघट पर किसे भरमाइए ।।
वो ये कहते हैं कि चारों सिम्त है अम्नो-अमान
हम ये कहते हैं हमारा मुँह तो मत खुलवाइए ।
जेल हम जिसको समझते थे वो था ख़ाला का घर
चाहे जितने दिन ठहरिए चाहे जब हो आइए ।
हर सड़क पर दार<ref>फाँसी का तख़्ता</ref> होगा आनेवाले हैं वो दिन
सरफ़रोशी पर अभी से इतना मत इतराइए ।
अबके जब डिग्री मिले थोड़ा शहद भी माँग लें
चाटिए ख़िल्वत में जाकर चाटकर सो जाइए ।
सोज़ ने माना सुखन<ref>शायरी</ref> से होना-जाना कुछ नहीं
कम से कम इतना तो है माहौल ही गरमाइए ।
शब्दार्थ
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