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सोठिया हम सँजोगल, मन छेलऽ धिया होती हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सास पतोहू से सोंठ-पीपल पीने का अनुरोध करती है और यह भी कह देती है कि इसके पीने से बच्चे के लिए दूध होगा; लेकिन वह यह कहकर पीना अस्वीकार कर देती है कि सोंठ-पीपल पीने से ओठ फूल जायेंगे, कंठ जलने लगेगा और सोने से मढ़े हुए मेरे दाँत खराब हो जायेंगे। उसकी गोतिनी और पति भी उससे पीने का अनुरोध करते हैं। वह सबको एक ही तर्क देती है और पीना अस्वीकार कर देती है।

सोंठिया हम सँजोगल<ref>सँजोकर रखा</ref>, मन छेलऽ<ref>मन था</ref> धिया होती हे।
ललना रे, जनमलै रूपनारायन, सभे मन हरखित हे॥1॥
मचिया बैठलि तोहें सासुजी, पुतहू सेॅ अरज करै हे।
ललना रे, पीलऽ<ref>पीलो</ref> पुतहू सोंठिया पिपरिया, बबुआ ल दूध होइथों हे॥2॥
सोंठिया पिअइते ओठ फूजलै<ref>फूल गया; सूज गया; खुल गया</ref>, कंठ बेदिल<ref>दग्ध; व्याकुल</ref> भेलै हे।
ललना रे, सोबरन मेढ़ल<ref>सोने से मढ़ा हुआ</ref> सभे दाँत, बलैया पीअब पीपरि हे॥3॥
भनसा पैसली तोहें गोतनी, कि गोतनी सेॅ अरज करै हे।
ललना रे, पीलऽ गोतनी सोंठिया पिपरिया, बबुआ ल दूध होइथों हे॥4॥
सोंठिया पिअइते ओठ फूजलै, कंठ बेदिल भेलै हे।
ललना रे, सोबरन मेढ़ल सभे दाँत, बलैया पीअब पीपरि हे॥5॥
पोथिया पढ़ैतेॅ तोहें परभुजी, कि धानि से अरज करै हे।
ललना रे, पिअहो धानि सोंठिया पिपरिया, बबुआ ल दूध होइथौं हे॥6॥
सोंठिया पिअइते ओठ फूजलै, कंठ बेदिल भेलै हे।
ललना रे, सोबरन मेढ़ल सभे दाँत, बलैया पीअब पीपरि हे॥7॥

शब्दार्थ
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