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सोना ऐसन देहिया हो संतो भइया / कबीर
Kavita Kosh से
सोना ऐसन देहिया हो संतो भइया,
सेहो जइतै समसानियो रे जान।
जान, करी लेहो संतो भइया, सतगुरु के भजनियो रे जान॥
देहिया के कमइयो हो संतो भइया,
कामो नहीं अइतौ रे जान।
जान, एके रे अइतौ काम, गुरु के भजनियो रे जान॥
धन और यौवन हो केरो,
मत करु गुमनवाँ हो जान।
जान, करि लेहो सतगुरु के दरसनमाँ रे जान॥
कोखिया के जनमल हो संतो भइया,
सेहो भइलै मुदइयो रे जान।
जान, घुमि-घुमि अगिया, तोहरा लगैतौ रे जान॥
बड़ा भाग भइलै हो संतो भइया,
मानुष भइलै जनमियो रे जान।
जान, फेरु नहीं मानुष जनमियो रे जान॥
गुरु शब्द मंत्र हो संतो भइया,
बाँधि लेहु गठरियो रे जान।
जान, वही चढ़ि उतरबै, भव पारबो रे जान॥
साहेब कबीर हो संतो भइया,
गाबै छै निरगुणियो रे जान।
जान, संतो जन लेहु न विचारियो रे जान॥