मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सोना के पलकियासँ सीता के उतारू, हे डोलय ने पाबय
मोर सीता अति सुकुमारि, हे डोलय ने पाबय
पालकी के आगू-पाछू डाला भरि पान, आओर भरल दुभि-धान
धीरेसँ उतारू सोना के पलकिया, हे आँचर नहि फारय
मोर सीता अति सुकुमारि, हे डोलय ने पाबय
कहथिन वशिष्ठ मुनि सीता के अनुशासन, हे डोलय ने पाबय
कौशल्या के पूरल मन आसा, हे डोलय ने पाबय