♦ रचनाकार: अज्ञात
दुलहा स्नान कर रहा है। उसकी मंगल-कामना के लिए माँ, बहन और भाभी सूर्य की आराधना कर रही हैं कि उसे कोई नजर न लगा दे।
सोना चौंका चढ़ि किसुन नहाबे।
देखो रे कोई लजर<ref>नजर</ref> लगाबे॥1॥
माइ तोरअ<ref>तुम्हारा</ref> सिरुज<ref>सूरज; सूर्य</ref> मनाबे।
बहिनी तीरअ सिरुज मनाबे॥2॥
भौजी तोरअ सिरुज मनाबे।
देखो रे कोई लजर लगाबे॥3॥
शब्दार्थ
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