सोना रही उगलती धरती पाती रही सदा सम्मान
किन्तु उपेक्षा कर के मानव पाये कैसे दुख से त्राण
बार बार करवट ले धरती करती करुणा भरी पुकार
सुन न सके यदि आर्तनाद यह तो सबके जायेंगे प्राण
आग लगी जंगल में भीषण अगणित जीवों का संहार
कब तक करते रहें उपेक्षा अब लेना होगा संज्ञान
बन्द सुनीरा गंगा यमुना गोपालक हो अपना देश
मान करे धरती माता का कभी न भूखा रहे किसान
विभु के चरण चिह्न पर चल कर पालें गीता के उपदेश
मां करेंगें अगर प्रकृति का तभी करेगी वह कल्याण