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सोनेट-4-6 / विनीत मोहन औदिच्य

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4.वैराग्य

तोते, वानर सा बंधा जीव, माया के वशीभूत होकर
जड़ चेतन में जो पड़े ग्रन्थि, वो नहीं जागता खा ठोकर
हैं बहुत उपाय पुराणों में, नाना प्रकार से हैं वर्णित
छा रहा गहनतम अंधकार, रक्षक है प्रभु की कृपा कथित।

सात्विक श्रृद्धा रूपी सुंदर धेनु, जो हृदय कुंज में बस जाये
जप, तप, व्रत, संयम, नियम आदि शुभ धर्म आचरण अपनाये
शुभ आचार रूप तृण चरे धेनु, आसक्ति रूप बछड़ा जो पावे
निवृत्ति, नोई, विश्वासपात्र, निर्मल मन से गौ दास कहलावे ।

निष्काम भाव से दुह गौ रस को , पावन अग्नि पर औंटा कर
संतोष, क्षमा की वायु से कर ठंडा, धृति, शम का जामन देकर
तब मुदिता रूप कमोरी में, तत्वरूप विचार की मथानी से
समस्त दमन इंद्रियों का करके, दम रूपी खंभ के सहारे से।


सत्य व सुंदर वाणी रूपी, लगा रज्जु, उसको मथ ले
उससे निर्मल, सुन्दर पवित्र, वैराग्य रूप नवनीत मिले।।

5.प्रभु से मेल

समस्त शुभाशुभ कर्मों के ईधन को निस्पृह होकर एकत्र करे
कर प्रगट योग रूपी अग्नि, सारे कर्मों को भस्मीभूत करे
वैराग्य रूप जब मक्खन का, ममता रूपी मल जल जाये
तब निश्चयात्मिका बुद्धि से, घृत को फिर शीतल करवाये।

विज्ञान रूपिणी बुद्धि में, ज्ञान रूप निर्मल घृत को पाकर
समता का दीवट बना शीघ्र, रक्खे चित्त रूपी दीपक भर
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति अवस्था, सत, रज, और तम के गुणों से
तुरीय अवस्था रूप रुई से निर्मित वर्तिका संवार कर यत्नों से।

विज्ञान तेज राशिमय दीपक, ध्यानस्थ होकर करो प्रज्ज्वलित
जिसके समीप जाते ही, मद काम क्रोध रूपी हों शलभ शमित
भले ही इस संसार में शीतल हिम से प्रचंड अग्नि प्रगट हो जावे
पर रघुकुलनंदन राम से विमुख प्राणी कभी नहीं सुख को पावे।

संभव हो जल मथने से उत्पन्न घृत और बालुका से भी तेल
किंतु यहाँ हरि भजन बिन, मुक्ति न हो न ही प्रभु से मेल।।

6.शाश्वत सत्य

जिनकी हो चुकी है मृत्यु, उनके लिए उचित नहीं है शोक करना
जो जीवित हैं अभी उनके लिए नहीं अपेक्षित है दुख से भरना
सदा से विगत कालों में भी रहता आया है मानव का अस्तित्व
सुख दुख को समझ समान मोक्ष के लिए गढ़ अपना कृतित्व।

असत वस्तुओं की सत्ता का तत्व ज्ञानियों के लिए नहीं है प्रभाव
जो है शाश्वत उस सत्य का इस जगत में नहीं है लेश मात्र अभाव
है वह नितांत अज्ञानी जो आत्मा को मरने वाला या हंता जानते
काया है यह नश्वर परंतु ईश्वर अंश इस आत्मा को कोई न मारते।


जैसे जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों को त्याग कर मानव नये वस्त्र पहनता
उसी प्रकार जीवात्मा छोड़ कर पुराना शरीर नयी काया बदलता
इस आत्मा को न जल गला सकता और वायु इसे सुखा सकती
न कोई शस्त्र काट सकता न ही अग्नि आत्मा को जला सकती।


जब जन्म लिए हर प्राणी का धरा पर एक दिन मरण है निश्चित
और मृतक का जन्म है सुनिश्चित तो नहीं है उचित होना दुखित।
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