भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोने की खान / फ़रीद खान
Kavita Kosh से
एक कलाकार ने बड़ी साधना और लगन से यह गुर सीखा
कि जिस पर हाथ रख दे, वह सोना हो जाए ।
उसकी हर कलाकृति सोना बनने लगी,
और हर बार दर्शक ख़ूब तालियाँ बजाते ।
और हर बार सोना बनाने की उसकी ताक़त ख़ूब बढ़ती जाती ।
उसने अपने आस-पास की चीज़ों पर हाथ रखना शुरु कर दिया ।
हर चीज़ सोना बनती गई ।
उसकी कुर्सी, उसकी मेज़, उसके बर्तन ।
उसके घर वालों ने ख़ूब तालियाँ बजाईं ।
उसकी दीवारें, दरवाज़ें, खिड़कियाँ सब सोने की बन गईं ।
हर चीज़ जब बन गई सोना,
उसने माँ-बाप को छुआ, बच्चों को छुआ ।
उसकी बीवी जान बचा कर भागी ।
उसने माथे पर हाथ रखा,
और उसका घर सोने की खान बन चुका था ।
वह पहला कलाकार था,
जिसके घर से इतना सोना निकला ।