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सोने के पंख वाली चिड़िया / कुमार कृष्ण

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लोक-राग, लोक-आग की रानी
कब कैसे चली आई
महाराजा पटियाला के शहर में
मैं नहीं जानता
जानता हूँ बस इतना
उसके पास हैं लोक-वेदना के बेशुमार बीज़
जिसे चाहती है वह बोना
इस छोटी होती धरती पर
वह जानती है बनाना
आक्रोश की
पीड़ा की
उल्लास की
उन्माद की
तरह-तरह की तस्वीरें लोक-रंगों से
उसके पास है
दादी के-नानी के पंचतन्त्र की
बड़ी-सी पोटली
जिसे खोलती है वह कभी-कभार
अपने पुश्तैनी हुनर के साथ
वह है
सोने के पंख वाली चिड़िया
उसे आता है उड़ना सात समन्दर पार
वह जानती है छुपाना अपनी चोंच में
धरती की मिठास।