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सोमवार / सुशान्त सुप्रिय

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सुबह वह मुझे
झकझोर कर उठाता है

उसे देखकर
मुझे ऐसा लगता है जैसे
किसी दुर्घटना के
मृतकों की सूची में
मैं अपना नाम
देख रहा हूँ

उसे देखकर
मेरे तमाम उभरे हुए रंग
दब जाते हैं
और मेरे भीतर का नायक
अपने मन की कहानी
पीछे छोड़कर
लौटने की तैयारी
करने लगता है
एक बदरंग यांत्रिक दुनिया में...

मैं एक तिल-सा
रविवार के चित्र की ठोड़ी पर
सदा के लिए बस जाना चाहता हूँ
किंतु हर सोमवार मुझे
दीवार पर ठुकी
उस कील-सा
अकेला कर जाता है
जिससे उसका पसंदीदा चित्र
उतार लिया गया हो