भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोया हुआ हिन्दुस्तान तड़पकर जगे तो / राधेश्याम प्रगल्भ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों जी, आग लग गई?
हाँ, दमकल का शोर तो है ।
समय पर पहुँच पाएगी ?
राम जाने !
आग बुझा पाएगी ?
इसे भी राम जाने !

अरे, तुम भी कुछ जानते हो
या सब कुछ राम जाने?

मैं तो जानता हूँ
एक और आग को
जो लगी है हिन्दुस्तान के कोने-कोने में,
जिसको बुझाने में व्यस्त हैं
कोटि-कोटि नयन
अनेक वर्षों से रोने में।

आग बुझी ?
नहीं तो ।
लगता है, ये आग किसी पानी से
नहीं बुझ पाएगी,
इसे बुझाने के लिए
एक और आग चाहिए ।

काश़ !
वह आग
सूखी ठठरियों के कलेजों में लगे तो,
सोया हुआ हिन्दुस्तान तड़पकर जगे तो !