भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोलह शृंगार / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कदम पेड़ के ही नीचे,
वो बैठे थे अखियाँ मींचे,
हौले से गोद में सिर रखकर
प्रियतम ने मुझको प्यार किया
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

घन कुन्तल चेहरे को घेरे
लट सुलझाते अंगुली फेरे,
फिर घिरकर घनी घटाओं ने
केशों का नव विन्यास किया
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

अधरों को छूते मनमोहन
पल पल मचले मेरा कोमल मन,
पंखुड़ियों ने तत्क्षण खिलकर
लाली होठों पे डार दिया।
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

वो आँखों में आँखे डाले
मोहे मर्म मिलन का कह डाले
हिरणी की मद भरी अंखियों से
लेकर कजरारी धार दिया।
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

कानों में झुककर कह डाले
अद्वितीय मन सुन्दरी बाले,
बेला की तरूणिम् कलियों ने
ले कर्णकुंडली डार दिया।
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

मोहकता अधर पे मुस्काये
हिय स्पन्दन बढ़ता जाए,
अमियाँ की मंजरियों ने मिल
गले में स्वर्णिम हार दिया।
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

थे कोरी कलाई वो थामे
हौले से हाथों को चूमें,
वैजन्ती के नव पल्लव ने मिल
कंगन का आकार लिया
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

हौले से आलिंगन हेतू
बाँहों में जब मुझे भर ले तू,
छिपे दूज के चाँद ने बढ़कर
बाजूबँद आकार लिया।
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

चेहरे पर खुशियाँ तैर रही
गालों पे उँगली फेर रही,
लो सीप समंदर से आकर
मोती की मुंदरी डार गया।
खिली चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

अंग वस्त्र तन लिपटाए
कटिमध्य चुनर रही बलखाए,
हुए मुग्ध कुसुम के बेलों ने
कटिबंध हरित उपहार दिया।
खिली चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

नख से रेतों को खुरंच रही
कदमों की उँगली मचल रही,
कई नन्हीं तारों ने मिलकर
पग पायल नुपुर निखार दिया।
खिली चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

वो आलिंगन ले प्रीत जताते
नाक से नाक को सहलाते,
तब झुरमुठ की जुगनू ने आकर
लौंग सी नथनी डार दिया।
खिली चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

विन्यास केश करते प्रियतम
आनंदित होता कोमल मन
नर्तक मयूर ने पर पसार कर
चूड़ामणि उपहार दिया।
खिली चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।।

जन्मों-जन्मों का है बंधन,
मेरी मांग सजाते मनमोहन,
ले इन्द्रधनुष से लाल रंग
सिर सिंदूरी शृंगार किया।
खिली चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।।

अब हृदय चाँद का ललचाया
बिन्दिया बनने वो स्वयं आया,
मनमीत शशि को चुटकी भर
मेरी ललाट पे साट दिया।
खिली चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।

अद्भुत शांत स्वप्न खोई
मैं आलिंगन शिवमय सोई।
प्रीत रंग मेरा अंतर्मन
ज्योतिर्मय आत्म-निखार गया
फिर चाँद की चंचल किरणों ने
मेरा सोलह शृंगार किया।