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सोले साल जेकर हे दाहा / सिलसिला / रणजीत दुधु

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साले साल जेकरा हे दहना
ओकर किस्मत के की कहना
सरकारी दुबला पर छाने हे
फेर सालो भर न´अकाने हे
शिविर आउ राहत सब झुट्टे हे
खाली जनता के सब लुट्टे हे

दोष अपना पर न´ ले सरकार
तब दोसरा के सुनतइ चितकार
घटते पानी सभे भुला जाहे
आश्वासन घूँट पीला जाहे

जानमाल बहल नदिया के धार
तंबु में बस गेल घर आउ द्वार
रोजी रोटी के भी लाला हे
दुरभाग्य से पड़ गेल पाला हे

जब नजर होतइ स्थाई निदान
मरते रहतइ ऐसही इंसान
रोटी कपड़ा आउ मकान कहाँ
धरती पर हका भगवान कहाँ,