सोवा अबही बहुत रात बा / सन्नी गुप्ता 'मदन'
शीशा के गिलास मा बचपन
अबही पेटेक मार सहत बा।
रोय-रोय कै निज मालिक से
पइसा कै फरियाद कहत बा।
माटी कहू उठावत बाटै
कहू पै कूड़ा बाय उठावत।
तबहू दुइ जूनी कै रोटी
पहिरै कै कपड़ा न पावत।
देखि कै हालत अब भविष्य कै मनवा ई घबराय जात बा
झूठै का चिल्लात हये सब सोवा अबही बहुत रात बा।
अनाथालयन मा अबही भी
लड़केंन कै भरमार खूब बा।
अबही यहि खेते मा देखा
फसलन से भी अधिक दूब बा।
सब्जी बेचै खेत निरावै
ट्रेनें मा यै गाना गावै।
जब वसाय डारै यै गेहूँ
तब बेचारै भूसा पावै।
काम करै औकात से ज्यादा तबौ इ गलतिप मार खात बा।
झूठै का चिल्लात हये सब सोवा अबही बहुत रात बा।
नालक ऊपर रहत हये यै
गन्दगियन मा जीवन काटै।
यै दुनियक दुःख दूर करत है
यनके दुख का केव न बाँटै।
बालश्रमिक अपने धरती पै
घुट-घुट के अब जीयत बाटे।
अगर न समझब हम सब यनका
तो यनकै दुख अब के काटे।
मानवता भी खड़ी-खड़ी देखा यहि हालत से लजात बा।
झूठै का चिल्लात हये सब सोवा अबही बहुत रात बा।