सोवे का सुन जाग मीत, उम्मर तेरी गई बीत।
सिर पर उनसे कठन काल, भूल रहो कसक मर्म जाल।
काल कर्म की कठिन मार, हरनाम बिना नहिं लगो पार।
धंधे फंदे में भयौ धूर, अबकै बिछुरै गयो दूर।
सार शबद की गहो टेक, चेत लखो निज नाम एक।
ज्यौं काचे घट भरो नीर, स्वाशा सर चीन्हें शरीर।
मिसरत छूटै मिटे खेल, जोत समानी गपो तेल।
फिर जग भारी अंधकाल, भजन बिना तन जे हवाल।
जूड़ीराम गति एक सार, नाम बिना नर चलो हार।