भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोहत सुठि स्याम संग राधा रस-भीनी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोहत सुठि स्याम संग राधा रस-भीनी।
राधा-मन लीन-स्याम, राधा हरि-लीनी॥
सुभग नील-स्याम बदन, राधा हेम रंगी।
पीत बसन सुंदर, नव नील पट सुरंगी॥
अंग बरन आपस के दिय बसन धारी।
मोर-मुकुट सोहत सिर, चंद्रिका उज्यारी॥
अधरनि पै दो‌उन के मृदुल हँसी छा‌ई।
दो‌ऊ ही दो‌उन के अनुपम सुखदा‌ई॥
रास-रसराज स्याम, रासेस्वरि राधा।
सुंदर अभिराम स्याम, नित ललाम राधा॥