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सोहत सुठि स्याम संग राधा रस-भीनी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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सोहत सुठि स्याम संग राधा रस-भीनी।
राधा-मन लीन-स्याम, राधा हरि-लीनी॥
सुभग नील-स्याम बदन, राधा हेम रंगी।
पीत बसन सुंदर, नव नील पट सुरंगी॥
अंग बरन आपस के दिय बसन धारी।
मोर-मुकुट सोहत सिर, चंद्रिका उज्यारी॥
अधरनि पै दोउन के मृदुल हँसी छाई।
दोऊ ही दोउन के अनुपम सुखदाई॥
रास-रसराज स्याम, रासेस्वरि राधा।
सुंदर अभिराम स्याम, नित ललाम राधा॥