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सो गई शहर की हरेक गली / नासिर काज़मी
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सो गई शहर की हरेक गली
अब तो आ-जा कि रात भीग चली
कोई झोंका चला तो दिल धड़का
दिल धड़कते ही तेरी याद आई
कौन है तू, कहां से आया है
कहीं देखा है तुझको पहले भी
तू बता, क्या तुझे सवाब मिला
खैर मैंने तो रात काट ही ली
मुझसे क्या पूछता है मेरा हाल
सामने है तिरे किताब खुली
मेरे दिल से न जा ख़ुदा के लिए
ऐसी बस्ती न फिर बसेगी कभी
मैं इसी ग़म में घुलता जाता हूँ
क्या मुझे छोड़ जायेगा तू भी
ऐसी जल्दी भी क्या चले जाना
मुझे इक बात पूछनी है अभी
आ भी जा मेरे दिल के सद्रनशी
कब से खाली पड़ी है यर कुर्सी
मैं तो हलकान हो गया 'नासिर'
मुद्दते-हिज्र कितनी फैल गई।