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सो गया था दीप / त्रिलोचन

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सो गया था दीप मैंने फिर जगाया है


पथ कहाँ था सामने तम था

पद चले किस ओर दिग्भ्रम था

भय प्रबल था

मन अचल था

चाह थी गति की उसे पथ पर लगाया है


ज्योति थी आकाश तारामय

जुगुनुओं की जुगजुगाती लय

जो तिमिर था

मूक स्थिर था

देख कर लौ भूमि पर वह डगमगाया है


ज्योति कम है ज्योति तो कुछ है

भूमि तम से मुक्त तो कुछ है

दीप पल पल

दे रहा बल

सूर्य छिपने पर तिमिर इस ने हटाया है



(रचना-काल - 06-11-48)