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सो छबि छिनहुँ न हिय सों जा‌ई / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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सो छबि छिनहुँ न हिय सों जा‌ई।
करत गुपाल ललित लरिकैयाँ मैया लखि सचु पा‌ई॥
इक दिन स्याम रूँठि जननी सों करी निपट लरिका‌ई।
हुमकि पीठ चढि धरि दधि-भाजन गोरस लूट मचा‌ई॥
बानर बोली-बोलि दधि बाँटत, माँगत सो‌उ किलका‌ई।
सो उतपात निरखि जननी अति आतुर चली रिसा‌ई॥
छरी दिखा‌इ कहत-’रे कान्हा ! तैं अति धूम मचा‌ई।
करिहौं चूर चातुरी तोरी, अब लुकिहै कित जा‌ई’॥
जननि सकोप बिलोकि स्याम तब रहे तहीं ठिठका‌ई।
सो ससंक चितवन मोहन की मुनि-मन लियो चुरा‌ई॥