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सो तो है खचेरा / अशोक चक्रधर
Kavita Kosh से
गरीबी है- सो तो है,
भुखमरी है – सो तो है,
होतीलाल की हालत खस्ता है – सो तो खस्ता है,
उनके पास कोई रस्ता नहीं है – सो तो है।
पांय लागूं, पांय लागूं
बौहरे आप धन्न हैं,
आपका ही खाता हूं आपका ही अन्न है।
सो तो है खचेरा !
वह जानता है उसका कोई नहीं,
उसकी मेहनत भी उसकी नहीं है –
सो तो है।