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सो न जाना कि मेरी बात अभी बाक़ी है / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
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सो न जाना कि मेरी बात अभी बाक़ी है
अस्ल बातों की शुरूआत अभी बाक़ी है
तुम समझते हो इसे दिन ये तुम्हारी मर्ज़ी
होश कहता है मेरा रात अभी बाक़ी है
खुशबू फ़ैली है हवाओं में कहाँ सोंधी-सी
वो जो होने को थी बरसात अभी बाक़ी है
घिर के छाई जो घटा शाम का धोका तो हुआ
फ़िर लगा शाम की सौगात अभी बाक़ी है
खेलते ख़ूब हो, चालों से तुम्हारी हम ने
धोके खाए हैं मगर मात अभी बाक़ी है
जो नुमायाँ है यही उन का तअर्रुफ़ तो नहीं
बूझना उन की सही ज़ात अभी बाक़ी है
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंज़िल ये नहीं
मंज़िलों से तो मुलाक़ात अभी बाक़ी है