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सो रहा था बेख़बर / निश्तर ख़ानक़ाही

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सो रहा था बेख़बर, सोते में कैसे आ गया
चलके मैं दालान से ज़ीने में कैसे आ गया

पेड़ को भी शहर ने ही दिया, कोताह-क़द
पाम का ऊँचा शजर गमले में कैसे आ गया

पहले हैरत थी कि मुझ पर खुल गया तेरा तिलिस्म
अब मैं हैराँ हूँ, तेरे कब़्ज़े में कैसे आ गया

तेरे नाते उसने की मेरी पज़ीराई बहुत
यह सलीक़ा तेरे हमसाए में कैसे आ गया

उसकी मजलिस में रही यह गुफ़्तगू मौजूए-बहस
ख़ुश्क पत्ता मरकज़ी धारे में कैसे आ गया

थक गया ख़ाइफ़ हुआ, या छोड़ दी आवारगी
सबसे पहले आज मैं कमरे में कैसे आ गया

1- कोताह-क़द--बौना

2- पज़ीराई --आवभगत

3- मौजूए-बहस--चर्चा का विषय

4- ख़ाइफ़--भयभीत