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सौगन्ध / मोहन अम्बर
Kavita Kosh से
हर लहर तूफान है पर, नाव मेरी डोलना मत।
प्यास बढ़ती जा रही है घन अछूते जा रहे हैं,
लू लपट के क्रूर झोंके अग्नि-शर बरसा रहे हैं,
पर तुझे सौगंध मेरी पीर घूंघट खोलना मत,
हर लहर तूफान है पर नाव मेरी डोलना मत।
पंख पंछी के थके हैं और आंधी आ रही है,
जिन्दगी बेबस किसी की इसलिए कुछ गा रही है,
पर तुझे सौगंध मेरी पीर घूंघट खोलना मत,
हर लहर तूफान है पर नाव मेरी डोलना मत।
फूल टूटा डाल से पर डाल में उलझा पड़ा है,
और उसकेे साथ का हर फूल मूरत पर चढ़ा है,
पर तुझे सौगन्ध उपवन जय पराजय तोलना मत।
हर लहर तूफान है पर नाव मेरी डोलना मत।