भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सौगात / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक पल तुमने छूआ बस, नेह-नख से गात
काँपता युग भर रहा यह, दीन पीपल पात

मैं शीला बनकर पड़ा था, झेलता अभिशाप
ठोकरों से प्राण जागे, फिर करो आघात

वाटिका में नित्य पतझर, शोक-उत्सव-लीन
खिल उठा पगला उमग, पा सुरभिमय संघात

एक नटखट सी हवा ने, चूमकर यह गाल
सांस में कितने जगाए, तीव्र झंझावात

आँख में बजने लगे हैं, बाँसुरी के गीत
अब न ऐसे मौन बैठो, प्रिय करो कुछ बात

एक दिन था मैं अकिंचन, दर्द से अंजान
आज मेरे पास आँसू, प्रीत की सौगात