सौतेले दिनों की कविता / अग्निशेखर
मेरा दुःख उन्हें असुविधा में दाल देता है
मुझे नहीं आना चाहिए था
इसे साथ लेकर
वे हो जाते हैं निरुत्तर
और यह उनके लिए कितने बड़े दुःख की बात है
उनके यहाँ दुःख था
एक चुने हुए मुद्दे की तरह
मुश्किल से हाथ आया हुआ
ये उस पर रात दिन लिख रहे थे कवितायेँ
पत्रिकाओं के पन्नों पर
चमक रहे थे उनके वक्तव्य
त्रासद था हिंसा और उन्माद पर
लिखी जा रही कविताओ की तुलना में
किसी एक खास कवि को उछाला जाना
मेरे दुःख से कुछ नहीं था बन्ने वाला
उस पर बोलने के खतरे थे
वे धर्म और जाती देखकर
शोकगीत लिखने के दिन थे
मैंने समझाया अपने दुःख को
की वह रहे मेरे सीने में दबा चुपचाप
देखता जाए
दुनिया का एक्स-रे
चलता चले मेरे क़दमों से आवारा
वर्जित क्षेत्रों में
करे खलबली पैदा
देखे दया से उन्हें
जो बचते है मेरे कहे शब्दों से
दुःख मेरे अटपटे हैं