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सौदा / सौमित्र सक्सेना

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मैं चिड़िया हूँ
हँसने दो मुझे अपने आसमानों में
खेलने दो अपने खेतों की मेड़ों पर
रुके हुए छलछलाते पानी के बीच

जब मैं झूमती हुई बालियों के भीतर से
मस्ती में गुज़रूँगी और
फुदक-फुदक
पौधों के मुकुट हुए सिरों से
दाना चुगूँगी तो
गेहूँ का फलना
कैसा उत्सव हो उठेगा!

देखो ये
दोस्ती की सौदा है।
अपनी हथेली पर बिठा लो मुझको
फिर अपने कान को मेरे
परों की झुरझुरी से सहलाओ
सुनो
नन्हीं सी डोलती गरदन क्या कहती है-

तुम्हारी अमराई की बयार
आकाश की भरी आँखो से
बूँद-बूँद टपकती
पत्तों पर फिसलती
उसकी ख़ुशी और
मौसम के अल्हड़पन में भी
गहराता ये दीर्घ निःश्वास
कि जब चोच मारती हूँ मैं
तुम्हारे ढेर सारे फलों में से एक पर
तो ऊपर का अन्नदाता
मेरे मुँह से
ऋतु का प्रसाद चखता है
बदले में मिठास भरता है उनमें

देखो ये मिठास का सौदा है!
इसी से दुनिया सुन्दर है ।