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सौनचिड़ी / रवि पुरोहित
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सौन चिङकली
क्यूं थूं गुमसुम
क्यों जीव तङफावै,
मन री कह दै
हळकी हुयज्या
क्यूं जूण रळकावै ?
पग-पग छेङै
बैठ्या बैरी
स्यान कचोवैला थारी,
लोक लाज री चूंदङी में
पछै नीं लागै कारी ।
मादा नांव सुणीज्यो चाहीजै
काटक गिरझ पङै घणां,
भाव-भावना खङ्या बिसूरै
मनगत रोवै झरां-झरां....... ।
आं तिलां में तेल कोनी
दुख घणी थू पावैली,
आज थूं राणी
काल रांड बण
आखी उतर कुरळावैली ।
आ जूण
गळैङी कांबळ
ठा नीं कित्ता सळ पङै,
बिल-बाम्ब्यां सूं सुळ्यौ जमारो
ठा नीं कुण कद छळ बङै ?
मान बावळी थूं सुखी है
खुलै आभै उरळावै,
जीवत जाळोटां री बस्ती
मिनख चींत गरळावै ।