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सौनोॅ रोॅ चूड़ी / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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दुनियां में समय रोॅ अजब छै लीला,
काल छेल्हां सुखोॅ में आय छी दुःखोॅ में अकेला।

तोहें गेल्हेॅ हमरा छोड़ी केॅ जेन्हां,
हम्मू जैबोॅ दौड़ी केॅ तोरा लेॅ वैन्हां।
आबेॅ दुःख सहै लेॅ नै पारबोॅ तोरोॅ बिना,
दिन रात सद्धो खन्नी दै छै उलाहना।
केकरा सें लेबोॅ आबेॅ हम्में सल्हा?

जेकरोॅ रहै छै मरद हरदम साथोॅ में,
वोकरा देखोॅ सौनोॅ में हरा-हरा चूड़ी हाथों में।
हमरोॅ तेॅ सब्भें सुख गेलोॅ उड़ी,
हम्मी गेलां सब्भे रंगोॅ सें नठी बूड़ी।
उनखा उठाय केॅ लैगेलै "संधि" जेन्हां चिल्हा।