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सौन्दर्य-बोध / रंजना जायसवाल

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मेरे केश काली घटाओं जैसे नहीं हैं
न आँखें मछलियों-सी
चाँद जैसी उजली हूँ
न फूलों-सी नाजुक

मेरे हाथ खुरदुरे और मजबूत है
धूप में काम करने से
साँवला रंग पड़ गया है स्याह
जुटा लेती हूँ मेहनत-मशक्कत करके
अपना भोजन स्वयं
दूसरों के धन पर नहीं गड़ाती आँख
मेरे देह से फूटती है
एक आदिम गन्ध