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सौन्दर्य-सृष्टि-संवेदन में कितना संजीवन अमृत है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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सौन्दर्य-सृष्टि-संवेदन में कितना संजीवन अमृत है।
आनन्दधाम की वाणी का प्राणेश! निमंत्रण स्वीकृत है।
हे सुन्दरतम ! मैं भी तुमको अभिराम पत्रिका भेजूँगी।
नित कर्म-भावना-गीतों में सौन्दर्य-सुवास सहेजूँगी।
आनन्दलोक की वाणी में ही भेजूँगी पाती प्रियतम!
सुन्दरतम आमंत्रण की प्रतिध्वानि प्राण! क्यों न होगी अनुपम।
साभार समर्पण-हित विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली॥89॥