भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सौन्दर्य लहरी / पृष्ठ - 11 / आदि शंकराचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरस्वत्या लक्ष्म्या विधिहरिसपत्नो विहरते
रतेः पातिव्रत्यं शिथिलयति रम्येण वपुषा ।
चिरं जीवन्‍नेव क्षपित पशुपाशव्यतिकरः
परानन्दाभिख्यं रसयतिरसंत्वद्भजनवान् ॥१०१॥

निधे नित्यस्मेरे निरवधिगुणे नीतिनिपुणे
निराघाटज्ञाने नियमपरचित्तैकनिलये ।
नियत्या निर्मुक्ते निखिलनिगमान्तस्तुतपदे
निरातङ्के नित्ये निगमय ममापि स्तुतिमिमाम् ॥१०२॥

प्रदीपज्वालाभिर्दिवसकरनीराजनविधिः।
सुधासूतेश्चन्द्रोपलजललवैरर्घ्यरचना ॥
स्वकीयैरम्भोभिः सलिलनिधिसौहित्यकरणं
त्वदीयाभिर्वाग्भिस्तव जननि वाचां स्तुतिरियं ॥१०३॥

॥ इति श्री १०८ श्रीमच्छङ्कराचार्य
विरचित "सौन्दर्य लहरी" सम्पूर्णा ॥
     ॥ ॐ तत्सत् ॥