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सौरऊर्जा-वाले दौर / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

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तेरी बात और है
प्यारे! मेरी और!

मैं निर्झर, खो गया धधकते सागर में,
अनचाहा-आगुन्तक-सा अपने घर में,
सिर से मौर गिरी
मैं हूँ ऐसा सिरमौर!

शीशफूल में रहा कभी आभरणों में,
रस-फल-सा चढ़ गया, निपट जड़-चरणों में,
अब न फलेंगे
कल्पवृक्ष पर आये बौर!

आगत मुझ को विगत नहीं होने देता,
चेतन, अंतिम नींद नहीं सोने देता,
आते-रहते
सौरऊर्जा-वाले दौर!