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सौरभ का संदेशा / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
काँटों, कीड़ों और कीचड़ के बीच
मैं तो खिल गया हूँ
बगिया के बहाने,
दुनिया को मिल गया हूँ!
अब आप जैसा चाहें
वैसा सलूक करें
चाहें तो सही चलें
चाहें भूल-भूल करें!
चाहें तो फेंक दें
किसी मंदिर में
पत्थर के आगे,
चाहें तो पिरो डालें
बेध सुई धागे!
प्रियतम को रिझाने,
चाहे खोंस रखें जुड़े में,
कोई नाराजी हो-
डलवा दें कूडें में!
न कोई दुश्मन है
न कोई सगा,
किसी से न प्यार
न किसी को दगा!
फिर भी मन कहता है,
आप मुझे
डाली पर रहने दें
सौरभ का संदेशा
अंतिम पंखुड़ियाँ तक
दुनिया से कहने दें!