सौरभ सकेलि मेलि केलि ही की बेलि कीन्हीं,
सोभा की सहेली सु अकेली करतार की ।
जित ढरकैहौ कान्ह, तितही ढरकि जाय,
साँचे ही सुढारी सब अँगनि सुढार की ।
तपनि हरति 'कवि आलम’ परस सीरो,
अति ही रसिक रीति जानै रस-चार की ।
ससिं को रसु सानि सोने को सरूप लैके,
अति ही सरस सों सँवारी घनसार की ।