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सौरभ सकेलि मेलि केलि ही की बेलि कीन्हीं / आलम

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सौरभ सकेलि मेलि केलि ही की बेलि कीन्हीं,
                  सोभा की सहेली सु अकेली करतार की ।
जित ढरकैहौ कान्ह, तितही ढरकि जाय,
                  साँचे ही सुढारी सब अँगनि सुढार की ।
तपनि हरति 'कवि आलम’ परस सीरो,
                  अति ही रसिक रीति जानै रस-चार की ।
ससिं को रसु सानि सोने को सरूप लैके,
                  अति ही सरस सों सँवारी घनसार की ।