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सौ पगी हूण !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
धपाऊ मेह
हरी कचन
घोटां पोटां बाजरी
लीला छिम
खारीयै मान मोठ
कड्यां सूदो गुंवार
बेलां रै बैथाक चिंयां
को कातरो न फाको
रामजी री मैर
समूं जोर रो
साख सवाई
करसै रै नेणां में सपनां
मनड़ै में नेठाई
पण कुदरत री नीत में खोट
चनेक में फिरग्यो बायरो
चालगी बैरण नागौरण
बैठगी पींदै आल
सूखगी खेत्यां
पड़ग्यो अणधार्यो काळ,
मिनख, बरसावै नकली बिरखा
पण कठै नकली पून
दो पगी काया
सौ पगी हूण !