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सौ बार लौह-ए-दिल से मिटाया गया मुझे / निश्तर ख़ानक़ाही

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सौ बार लौह-ए-दिल[1] से मिटाया गया मुझे
मैं था वो हर्फ़-ए-हक़[2] कि भुलाया गया मुझे ।

इक ज़र्रा-ए-हक़ीर[3] तेरि रहगुज़र का था
लाल-ए-यमन[4] न था कि गँवाया गया मुझे ।

लिख्खे हुए कफ़न से मेरा तन ढका गया
बे-कत्बा[5] मक़बरों[6] में दबाया गया मुझे ।

महरूम करके साँवली मिट्टी के लम्स[7] से
ख़ुश रंग पत्थरों मे उगाया गया मुझे ।

पिन्हा[8] थी मेरे तन में कई सूरजों की आँच
लाखों समन्दरों में बुझाया गया मुझे ।

किस-किसके घर का नूर थी मेरे लहू की आग
जब बुझ गया तो फिर से जलाया गया मुझे ।

मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा
ये क्या कि चुटकियों में उड़ाया गया मुझे ।

शब्दार्थ:

   1. ↑ दिल की तख़्ती, हृदय-पटल
   2. ↑ सच्ची बात
   3. ↑ क्षीण कण
   4. ↑ यमन का क़ीमती पत्थर
   5. ↑ क़ब्र पर लगी हुई तख़्ती से रहित
   6. ↑ वह स्थान जहाँ क़ब्रें हों
   7. ↑ छूना
   8. ↑ छुपा हुआ