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स्कूल खुले / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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स्कूल खुले, स्कूल खुले,
जब गन्नूजी कूल गए तो,
नए पुराने दोस्त मिले।

सब कंधे पर बस्ता टांगे।
हँसते गाते कुछ मस्ताते।
कुछ चले जा रहे मोटर में।
कुछ पैदल कुछ स्क्रूटर में।
हैं रंग बिरंगे बस्तों में,
बच्चे लगते हैं बहुत भले।

दिन भर वे पढ़ते लिखते हैं।
कुछ कुछ ऊधम भी करते हैं।
दीदीजी ख़ूब हँसातीं हैं।
प्यारे से गीत सुनती हैं।
भगदड़ मच जाती शाळा में,
जब छुट्टी होती शाम ढले।

जब गन्नूजी घर पर आते।
दरवाजे पर माँ को पाते।
वह हंसकर गोदी में लेतीं।
गालों पर एक पप्पी देतीं।
पर गन्नूजी खुश होते जब,
लाकर देतीं माँ रसगुल्ले।